GURUDEO SHRI GANGADHAR PRAKASH BRAHMACHARI JI MAHARAJ IS THE SHAKTIPAT ADHIKARI GURU. HE IS THE DISCIPLE OF SWAMI SHRI VISHNU TIRTH JI MAHARAJ; DEVAS ASHRAM, NARAYAN KUTI, DEWAS (MP; BHARAT). THE TRADITION OF GURU and THE PEDIGREE THAT HE BELONGS TO IS DEPICTED IN THE web site adhyatmajyoti.org which is headed by shri Devendra Vigyani ji WHO IS ALSO A RENOWNED GURU OF THE LINEAGE. Find more about gurudev on the blog.
Friday, June 18, 2010
Tuesday, May 18, 2010
श्री गंगाधर प्रकाश जी महाराज का आज ९४ वाँ जन्म दिन
सर्वे भवन्तु सुखिनः सर्वे सन्तु निरामयः सर्वे भद्राणि पश्यन्तु मा कश्चित् दु:खभाग भवेत्
गुरुदेव श्री गंगाधर प्रकाश जी महाराज का आज ९४ वाँ जन्म दिन है. महाराजश्री का जन्म ईस्वी सन १९१७ में आदि शंकराचार्य जयंती के दिन- जो आज (१८ may २०१० ) भी है -इंदौर में कुलीन ब्रह्मण परिवार में हुआ. श्री महाराज जी अत्यंत स्वस्थ एवं प्रसन्नता पूर्वक मध्य प्रदेश एवं छत्तीसगढ़ की सीमा पर शहडोल में अपने शिष्यों एवं उनके शिष्यों के शिष्यों के साथ सानंद उपस्थित हैं व अपने वरद हस्त से सब पर अपनी कृपा वृष्टि समान रूप से कर रहे हैं.
आज शिष्य समुदाय शहडोल में उपस्थित हो उनका जन्म दिन अति हर्षोल्लास के साथ संपन्न कर रहा है. श्री ललित बिहारी श्रीवास्तव के मार्ग दर्शन में श्री गिरधर माथनकर जी के निवास पर श्री महाराज जी का जन्मोत्सव सामूहिक ध्यान पूजन आदि कृत्यों सहित सोत्साह सम्पन्न किया जा रहा है.
श्री महाराज श्री चिरायु हो यही हम सब की कामना है. महाराज श्री के जन्मोत्सव के चित्र शीघ्र उपलब्ध होने पर प्रदर्शित करने का विचार है.
Monday, February 22, 2010
Tuesday, January 19, 2010
MAHAYOG
(The only oldest living disciple of Swami VISHNU TEERTH JEE MAHARAJ who was bestowed GURU-PAD some time in the year 1952)
GURUDEO SHRI GANGADHAR PRAKASH BRAHMACHARI JI MAHARAJ IS THE SHAKTIPAT ADHIKARI GURU. HE IS THE DISCIPLE OF SWAMI SHRI VISHNU TIRTH JI MAHARAJ; DEVAS ASHRAM, NARAYAN KUTI, DEWAS (MP; BHARAT). THE TRADITION OF GURU - THE PEDIGREE THAT HE BELONGS TO -IS DEPICTED IN THE web site http://adhyatmajyoti.org/gurus_lineage.html which is headed by shri Devendra Vigyani ji WHO IS ALSO A RENOWNED GURU OF THE LINEAGE. Find more about gurudev on the blog.
गुरुदेव श्री गंगाधर प्रकाश ब्रह्मचारी
ब्रह्मानंदम परमसुखदं केवलं ज्ञानमूर्तिं
द्वंदातीतं गगन सदृश्म तत्वमस्यादिलक्षयं
एकं नित्यं विमलं अचलं सर्वधी साक्षिभूतं
भावातीतं त्रिगुण रहितं सद्गुरुम तं नमामि !!
अखंड मंडला कारं व्याप्तं येन चराचरम्
तत्पदं दर्शितं येन तस्मै श्री गुरवे नमः !!
गुरुर्ब्रह्मः गुरुर्विष्णु गुरुर्देवो महेश्वरः
गुरुसाक्षात परब्रह्म तस्मै श्री गुरवे नमः!!
महायोग की अनवरत धारा परम् पूज्य स्वामी परमानन्द तीर्थ जी महाराज से प्. पू.स्वामी.मुकुंद्तीर्थ, प.पू.स्व. गंगाधर तीर्थ जी महाराज से होती हुई स्वामी विष्णुतीर्थ जी, ब्र. श्री गंगाधर प्रकाश तक सतत रूप से प्रवाहित होती चली आ रही है जिसका विषद वंश वृक्ष आध्यात्म ज्योति.ओआरजी में प.पू. देवेन्द्र विज्ञानी जी के द्वारा यत्न पूर्वक निर्मित कर प्रस्तुत किया गयाहै.
पूज्य गंगाधर प्रकाश ब्रह्मचारी जी (हमारे gurudeo) प.पू. स्व. विष्णुतीर्थ जी महाराज के वर्तमान में सबसे वरिष्ठतम शिष्य हैं जो आज भी ९३ वर्ष की आयु में पूर्ण रूपेण स्वस्थ एवं क्रियाशील रहते हुए प्रचार एवं प्रसार से विरक्त परिव्रजन करते एवं अपने शिष्यों के साथ ही निवास करते हैं. आज भी अपनी दिनचर्या एवं साधना प्रसन्नता पूर्वक संपादित कर रहे हैं एवं हमारे ऊपर अपनी सहज कृपा वृष्टि करते रहते हैं. श्री गुरुदेवो जयति !
Sunday, January 17, 2010
Tuesday, December 29, 2009
जीवन - प्रयास ही हमारा धर्म है. ,
पूर्व जन्म के कृत्यों के वशीभूत ही यह जन्म होता है यह तो हम कई बार अनेक स्थानों पर पढ़ चुके हैं जो मान्य है किन्तु इस जीवन में किये सत्कर्मों या सत्प्रयासों का परिणाम यदि आशाजनक न मिले तो क्या पुनः एक ओर जन्म की यात्रा नियत होती है ?? उत्तर देना शायद मुमकिन न हो . किन्तु प्रयास करना
पातंजल योग दर्शन में सतत अभ्यास एवं ईश्वर प्रणिधान पर ही बल दिया गया है. ईश्वर-प्रणिधान का अत्यंत स्पष्ट विवेचन स्वामी शिवोम तीर्थ जी ने पातंजल योग दर्शन पर अपनी टिप्पणियों में अनेक बार समझाया है. इस शब्द का इतना अच्छा स्पष्टीकरण सभी साधकों के लिए पठनीय व अनुकरणीय बन गया है. स्वामी विष्णुतीर्थ जी महाराज की पातंजल योगदर्शन पर टिप्पणियों को अत्यंत विद्वत्ता से समझाया है. जिससे साधक को प्रेरणा एवं अपने मार्ग में सतत लगे रहने व अपनी स्थिति का बोध करने में सहायता प्राप्त होती है.
Sunday, December 13, 2009
GURU DEO GANGADHAR PRAKASH OF MAHAYOG PARAMPARA:
GANGADHAR PRAKASH GURUDEV OF MAHAYOG PARAMPARA:
आह आजकल देश में विभिन्न प्रकार के योग से जुड़े हुए देश एवं विदेश में बसे भारतीयों के द्वारा न जाने कितने संस्थान प्रारंभ किये हैं जिनमे योग कक्षाएं चलाई जाती हैं तथा लोगो को आसन सिखाना तथा अनेक शारीरिक व्यायामों को योग कक्षा के नाम पर धन प्राप्त किया जाता है. क्या योग केवल आसन एवं प्राणायाम तक ही सीमित होकर रह गया है? योगेश्वर व योगीश्वर की इस धरा पर हम अपूर्ण ज्ञान का प्रसार कर केवल अपना नाम और धन बटोरने को ही योग कहेंगे.
अमेरिका के लोग इसी पर अपनी पुस्तकें प्रकाशित कर धन अर्जित कर रहे हैं. हमारे मनीषियों ने जिज्ञासुओं को किसी अपेक्षा के बिना ही अपना सर्वस्व प्रदान किया और इसे उन्होंने अपने गुरु ऋण से स्वयं को मुक्त करने का उपाय माना.
योग के गंभीर अंश तो आन्तरिक साधना का विषय हैं जिसमे आसन एवं प्राणायाम तो बाह्य उपक्रम मात्र है. योग किसी एक विधा का नाम नहीं है वरन यह जीवन को पूर्ण रूप से जीने की कला का नाम हैं.
यम और नियम व्यक्तिगत एवं सामाजिक आचार व्यवहार सिखाते है तो शरीर पक्ष आसनों व प्राणायाम से सुदृढ़ किया जाता हैं, प्रत्त्याहर से मानसिक विकारों को दूर करने का उपक्रम व धारणा से शुभ भाव व विचारों को धारण किया जाता हैं. ध्यान आतंरिक जगत् में प्रवेश में प्रथम पग है जिसमे अपने इष्ट को लक्ष्य कर एक चित हो समाधी की दिशा में जाना होता है. प्रत्याहार, धारणा एवं ध्यान स्वयं के द्वारा किये जाने हैं गुरु इसमें पूर्व निर्देश देते हैं. योग सामूहिक ड्रिल या म्यूजिक की धुन पर पैर थिरकाने की चीज नहीं है. सामूहिक सम्मलेन में आसन मुद्रा बंध एवं प्राणायाम तो किये जा सकते हैं पर इसके उपरान्त आगे की विधियों के लिए व्यक्तिशः व्यक्तिगत रूप से निर्देश की आवश्यकता होती है. गुरु अपनी शक्ति को शिष्य में प्रवेश कराकर यह कार्य सहज कर देते हैं. इसमें वे शिष्य से प्रवेश शुल्क नहीं मांगते; दिया भी नहीं जा सकता. अपनी तपस्या का फल एक क्षण मात्र में दे देते है; कितने वर्षों तक किस किस यंत्रणा को भोग कर जो उन्होंने सीखा हुआ होता है शिष्य उसे किस मूल्य पर क्रय कर सकेगा?
हजारों वेब साईट व योग संस्थानों में धन की मांग प्रथम कार्य होता है; जिज्ञासु को वहां क्या मिलेगा या जो वह चाहता है अंततः उसे कभी मिलेगा भी या नहीं इसकी उसे कोई जानकारी नहीं होती. योग से आकर्षित बहु जनों को तो योग के माध्यम से वे क्या पाना चाहते हैं यह भी ज्ञात नहीं होता इसीलिये आसनों और प्राणायाम की कक्षाओं में धन अप व्यय कर किंचित लाभ प्राप्त करने को ही योग समझ लेते हैं. आधुनिक जिम्नेसियम के सामान योग कक्षाएं मासिक या पाक्षिक शुल्क निर्धारित कर चलाई जाती है. पुस्तकों में भी आसनों की जानकारी एवं योग का स्वरुप का वर्णन किया जाता है पर क्या इससे योग की अनंत धारा प्रवेश हो पाता है?
योग के आधुनिकी करण पर चिंतनीय अनेक अनुत्तरित प्रश्न है. किन्तु जो जान बूझ कर बिना समझे निकल पड़ते हैं वही अपना समय व धन नष्ट करने के साथ जीवन के उतने बहुमूल्य पल भी वास्तविक मार्ग पाए बिना गवां देतें हैं.
योग को समझाने वाली अनेक प्राचीन पुस्तकों को अध्ययन कर अपना लक्ष्य का निर्धारण कर फिर किसी योग्य एवं समर्थ गुरु के निर्देश में सभी अंगों का अभ्यास प्रारंभ किया जा सकता है.
Wednesday, November 25, 2009
वीर गति प्राप्त जनों के प्रति श्रद्धांजलि
वीर गति प्राप्त जनों के प्रति श्रद्धांजलि
ईश्वर अनंत, अव्यय, अक्षर एवं महान है.
सर्वे भद्राणि पश्यन्तु मा कश्चित् दु:ख भाग भवेत् !!
भारत के सदग्रंथ सर्व जनों के प्रति प्रार्थना से भरे हुए है. सभी सुखी, निर्भय, सर्व-कल्यानेच्छु तथा दु:खहीन हों. ऐसी मानसिकता के देश वासियों को भी प्रताड़ना सहन करना पड़ती है. सभी युगों में ऐसे लोग हमारे बीच में भी विद्यमान थे. यज्ञ करने वाले साधुओं को प्रताड़ित होना पड़ता तथापि वे यही प्रार्थना करते थे :-
सर्वे भवन्तु सुखिन: सर्वे सन्तु निरामय:!सर्वे भद्राणि पश्यन्तु मा कश्चित् दु:ख भाग भवेत् !!
हमारी सीमाओं पर हर ओर से अनेक सदियों से आक्रमण होते रहे हैं, जिसका कारण था हमारी सम्पन्नता! अहिंसक व निरीह पशु भी मनुष्य कि हिंसा के पात्र बनते हैं. शांतिप्रिय देशवासी होने से आज ऐसे देश जहाँ युद्ध व प्रेम में सभी उचित माना जाता है हमारे ऊपर अपना अधिकार जमाने के लिए सीधे आक्रमण या अन्य कूटनीतिक विधियों का आश्रय लेने में आज भी संलग्न हैं. हम अपनी सुरक्षा के लिए हर संभव प्रयास करते हैं पर आक्रमणकारी षणयन्त्र की अद्भुत विधियाँ सोचकर ओर योजनायें बनाकर हमारे ऊपर अपना प्रभुत्व जमाना चाहते है जिसमे हमारे अनेक देशवासी बंधुओं को अपने प्राण व सम्पति से च्युत होना पड़ता है.
भगवन श्री कृष्ण के दिव्य वचनानुसार वे कर्त्तव्य परायण जन जो अपने कर्तव्यों का निर्वाह करते हुए दिवंगत होते हैं, वे युद्ध भूमि में वीरगति प्राप्त करते हैं और ईश्वर की विशेष कृपा के पात्र होते हैं. जिन निर्दोषों को आतताइयों ने अकारण मृत्यु दी ईश्वर के पास उनके लिए भी सुगति की व्यवस्था होगी.अभी एक रिअलिटी शो बना है जिसमे पूर्व जन्म की स्मृति को जागृत किया जाता है. उसमे पूर्व जन्म की घटनाओं एवं मृत्यु के पूर्व की स्मृतियों का विश्लेषण करें तो यही निष्कर्ष प्रत्यक्ष होता है कि जो पूर्व जन्म में किसी दुर्घटना वश अपनी पूर्ण आयु का भोग नहीं कर पाए थे; उन्हें ईश्वर ने इस जन्म में पहले से उत्तम कुल, स्थान एवं मान-सम्मान के साथ पुनः उत्पन्न किया और वे यहाँ अपने उत्तम जीवन को व्यतीत कर रहे हैं.
अतः ऐसे अकाल मृत्यु प्राप्त व्यक्तियों के परिवार जन भी उनके लिए शोक न करें. क्योंकि गीता में भगवान् श्री कृष्ण ने कहा है कि "जो हो चुका है उसके लिए शोच क्यों करें तथा जो अभी घटित ही नहीं हुआ उससे भयभीत क्यों हों "
तात्पर्य यह कि मृतकों के परिवार जन शोक न करें बल्कि उनके प्रिय जनों की सद्गति के लिए ईश्वर से प्रार्थना करें तथा उनके निमित्त से "अपाहिजों तथा वास्तव में पात्र लोगो को यथाशक्ति मृतक के नाम से दान दे, गायों एवं निरीह पशुओं पर अत्याचार न करे न होने दे न ही किसी को ऐसा करने के लिए प्रेरित करें जिससे उनके प्रिय जनों को शांति मिले ईश्वर भी उनके कार्य से संतुष्ट हों"
भविष्य में उनके सत्कार्य उन्हें भी सुफल प्रदान करें .. दिवंगत आत्माओं की सद्गति के लिए हम सतत ईश्वर से प्रार्थना करें, ईश्वर को सभी कार्यों के लिए धन्यवाद दे; भले ही जिन्हें हम अशुभ या प्रतिकूल समझते हैं वे भी ईश्वर की अनुग्रह समझ कर बिना किसी विवेचना के स्वीकार करें.. ईश्वर हमें दु:खों को सहन करने के लिए भी मानसिक शक्ति, शान्ति एवं धैर्य प्रदान करें.. अस्तु... शुभेच्छाओं सहित ~~~
Thursday, October 29, 2009
SHRI LALIT BIHARI JI
Mr. Lalit Behari Srivastava
Mr. Lalit G. Light Braah Gangadhar. Maharaj Also Extremely Scholars Dear To the Beloved Disciples, Devotees, Gita, Ramayana Go Post-graduate Degree Different Subjects RECEIVED Another Wanrgmayoan Gurudeo the powers and Enjoy Deep Penetration Go. You Cook, Mr.. Grace had received prior to 40 years and 24 years ago, empowered by Algha Ssuchynit extremely limited and the characters are given grace. And Your Self - Resident Narsinghpur Go Engaged Spiritual Discipline are here. Mr.. Read more About To Lalit G "My guru brothers"the Title Also Appearing Read the Views Expressed.
GURU DEO GANGADHAR PRAKASH OF MAHAYOG PARAMPARA: disciple of SHRI VISHNU TIRTH JI MAHARAJ ;
ब्रह्मानंदम परमसुखदं केवलं ज्ञानमूर्तिं
द्वंदातीतं गगन सदृश्म तत्वमस्यादिलक्षयं
एकं अचलं विमलं अचलं सर्वधी साक्षिभूतं
भावातीतं त्रिगुण रहितं सद्गुरुम तं नमामि !!
अखंड मंडला कारं व्याप्तं येन चराचरम्
तत्पदं दर्शितं येन तस्मै श्री गुरवे नमः
गुरुर्ब्रह्मः गुरुर्विष्णु गुरुर्देवो महेश्वरः
गुरुसाक्षात परब्रह्म तस्मै श्री गुरवे नमः!!
महायोग की अनवरत धारा परम् पूज्य स्वामी परमानन्द तीर्थ जी महाराज से प्. पू.स्वामी.मुकुंद्तीर्थ, प.पू.स्व. गंगाधर तीर्थ जी महाराज से होती हुई स्वामी विष्णुतीर्थ जी, ब्र. श्री गंगाधर प्रकाश तक सतत रूप से प्रवाहित होती चली आ रही है जिसका विषद वंश वृक्ष आध्यात्म ज्योति.ओआरजी में प.पू. देवेन्द्र विज्ञानी जी के द्वारा यत्न पूर्वक निर्मित कर प्रस्तुत किया गयाहै.
पूज्य गंगाधर प्रकाश ब्रह्मचारी जी (हमारे gurudeo) प.पू. स्व. विष्णुतीर्थ जी महाराज के वर्तमान में सबसे वरिष्ठतम शिष्य हैं जो आज भी ९३ वर्ष की आयु में पूर्ण रूपेण स्वस्थ एवं क्रियाशील रहते हुए प्रचार एवं प्रसार से विरक्त परिव्रजन करते एवं अपने शिष्यों के साथ ही निवास करते हैं. आज भी अपनी दिनचर्या एवं साधना प्रसन्नता पूर्वक संपादित कर रहे हैं एवं हमारे ऊपर अपनी सहज कृपा वृष्टि करते रहते हैं. Thursday, August 27, 2009
SHRI VISHNU TIRTH JI MAHARAJ ;


ब्रह्मानंदम परमसुखदं केवलं ज्ञान्मूर्तिम
द्वंदातीतं गगन सदरिषम तत्त्वमस्यादि लक्ष्यं!!
एकं नित्यं विमलमचलं सर्वधीसाक्षिभूतम
भावातीतं त्रिगुण रहितं श्रीविष्णु तीर्थं नताः स्म !!
अखंड मंडलाकारं व्याप्तं येन चराचरम् !
तत्पदं दर्शितं येन तस्मै श्री गुरवे नमः!
अज्ञानतिमिरान्धस्य ज्ञानांजनशलाकया !
चक्षुरुन्मीलितं येन तस्मै श्री गुरवे नमः!!
गुरुर्ब्रह्मा गुरुर्विष्णुर्गुरुर्देवो महेश्वरः !
गुरुः साक्षात् परम् ब्रह्म तस्मै श्री गुरवे नमः!!
गुरु के बिना ज्ञान नहीं होता ! गुरु ही आँखें खोलकर, हाथ में मशाल लेकर विघ्नोंसे बचाकर शिष्य को लक्ष्यस्थान सुखसे पंहुचाता है! गुरु और ईश्वर में कोई भेद नहीं, प्रत्युत शिष्य केलिए
अखंड मंडलाकारं व्याप्तं येन चराचरम् !
तत्पदं दर्शितं येन तस्मै श्री गुरवे नमः!
अज्ञानतिमिरान्धस्य ज्ञानांजनशलाकया !
चक्षुरुन्मीलितं येन तस्मै श्री गुरवे नमः!!
गुरुर्ब्रह्मा गुरुर्विष्णुर्गुरुर्देवो महेश्वरः !
गुरुः साक्षात् परम् ब्रह्म तस्मै श्री गुरवे नमः!!
गुरु के बिना ज्ञान नहीं होता ! गुरु ही आँखें खोलकर, हाथ में मशाल लेकर विघ्नोंसे बचाकर शिष्य को लक्ष्यस्थान सुखसे पंहुचाता है! गुरु और ईश्वर में कोई भेद नहीं, प्रत्युत शिष्य केलिए
तो गुरु इश्वर से भी बढ़कर है ! यही गुरु तत्त्व है.
रचनाएँ.:- श्रीविष्णु तीर्थ जी महाराज के द्वारा सौंदर्य लाहिरी सहित अनेक ग्रंथों की रचना की गई थी. किन्तु सौंदर्य लहरी को साधकों एवं अनुयाइयों के अतिरिक्त अन्य परम्पराओं के साधकों, तांत्रिक-शोध-कर्ताओं द्वारा गूढ़ अर्थों के विश्लेषण ज्ञात करने केलिए सन्दर्भ ग्रन्थ के रूप में उपयोग में लाया जाता है एवं पुस्तकालयों में भी इसे एक अनुपम कृति के रूप में संगृहीत किया जाता है.
उनके द्वारा लिखित ग्रंथों में विशेष रूप से वर्ण्य ग्रन्थ निम्नानुसार हैं. :-
१. "सौंदर्य लहरी" यह ग्रन्थ मूलतः संस्कृत भाषा में आदि शंकराचार्य जी के द्वारा लिखा गया था. इसकी रचना पद्य (श्लोकों ) के रूप में की गई है ! ग्रन्थ दृश्य रूप में देवी की प्रार्थना एवं सौंदर्य का वर्णन प्रतीत होती है. किन्तु इसके प्रत्येक श्लोक में गूढ़ अर्थ छिपा हुआ है. जिसका अर्थ स्वयं आत्म भाव में स्थित होने वाले संत के द्वारा ही संभव. स्वामी जी ने प्रत्येक श्लोक की अत्यंत विषद व्याख्या की है जिसमे न केवल ग्रंथों में वर्णित तथ्यों का आश्रय लिया है वरन साधना में होने वाले अनुभवों एवं साधना की बारीकियों को विषदरूप से समझाया है. श्लोकों के गूढ़ अर्थों की पुष्टि वेद, उपनिषदों एवं अन्य योग एवं तांत्रिक ग्रंथों के आर्ष वाक्यों से की है.
२.DIVINE POWER :- आंग्ल भाषा में रचित यह ग्रन्थ विशेषतया ऐसे पाठकों के लिए लिखा गया है जो भारतीय संस्कृति के गूढ़ तथ्यों को समझना चाहते हैं. इसमें कुण्डलिनी शक्ति, उसके अवतरण, लक्षण एवं साधना सम्बन्धी विशेषताओं को पांडित्य पूर्ण ढंग से समझाया है. लेखक की विद्वता एवं भाषा पर विशेषाधिकार का परिचय भी इस ग्रन्थ के पठन से प्राप्त होता है. महा महोपाध्याय पंडित गोपीनाथ जी कविराज जी ने इस ग्रन्थ पर दी हुई अपनी टिपण्णी में इस तथ्य को स्वीकारा है कि लेखक अनुभवी प्रतीत होते हैं.
A staunch nationalist contributor to the freedom consciousness turned a Sanyasi and Yogi ., An eminent writer in English, Hindi and Sanskrit and an Advocate in Allhabad High Court of Uttar Pradesh.
Wednesday, August 26, 2009
CURRENT DISCIPLES OF GURUDEO
THE DISCIPLES OF SHRI GANGADHAR PRAKASH JI BRAH.
1 SHRI LALIT BIHARI SHRIVASTAVA, and his wife Smt. KISHORI DEVI
2 SHRI OM PRAKASH SHRIVASTAVA and his wife Smt. RENUBALA THE BLOGGER
3.SHRI GIRISH KUMAR VARMA and his wife Smt. MANORAMA DEVI
FROM CHITRAKOOT:-
1. Late SHRI RAM SAHAY JI YADAV
This list does not intend or claim to display all the disciples. Only those who have been in contact are displayed. If any disciple wishes his name to be added here, he/she may contact the blogger or send a comment hereunder.
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