ब्रह्मानंदम परमसुखदं केवलं ज्ञानमूर्तिं
द्वंदातीतं गगन सदृश्म तत्वमस्यादिलक्षयं
एकं अचलं विमलं अचलं सर्वधी साक्षिभूतं
भावातीतं त्रिगुण रहितं सद्गुरुम तं नमामि !!
अखंड मंडला कारं व्याप्तं येन चराचरम्
तत्पदं दर्शितं येन तस्मै श्री गुरवे नमः
गुरुर्ब्रह्मः गुरुर्विष्णु गुरुर्देवो महेश्वरः
गुरुसाक्षात परब्रह्म तस्मै श्री गुरवे नमः!!
महायोग की अनवरत धारा परम् पूज्य स्वामी परमानन्द तीर्थ जी महाराज से प्. पू.स्वामी.मुकुंद्तीर्थ, प.पू.स्व. गंगाधर तीर्थ जी महाराज से होती हुई स्वामी विष्णुतीर्थ जी, ब्र. श्री गंगाधर प्रकाश तक सतत रूप से प्रवाहित होती चली आ रही है जिसका विषद वंश वृक्ष आध्यात्म ज्योति.ओआरजी में प.पू. देवेन्द्र विज्ञानी जी के द्वारा यत्न पूर्वक निर्मित कर प्रस्तुत किया गयाहै.
पूज्य गंगाधर प्रकाश ब्रह्मचारी जी (हमारे gurudeo) प.पू. स्व. विष्णुतीर्थ जी महाराज के वर्तमान में सबसे वरिष्ठतम शिष्य हैं जो आज भी ९३ वर्ष की आयु में पूर्ण रूपेण स्वस्थ एवं क्रियाशील रहते हुए प्रचार एवं प्रसार से विरक्त परिव्रजन करते एवं अपने शिष्यों के साथ ही निवास करते हैं. आज भी अपनी दिनचर्या एवं साधना प्रसन्नता पूर्वक संपादित कर रहे हैं एवं हमारे ऊपर अपनी सहज कृपा वृष्टि करते रहते हैं.
1 comment:
मानव जन्म का मौलिक अधिकार
ॐ नमों भगवते वासुदेवाय
साधना से एक दिन सब पाया जा सकता है. वैदिक युग में समाधि में लीन ऋषि गण भौतिक जगत् के बारे में भी वे सभी जानकारियां पा जाते थे जो आज विज्ञानं विभिन्न gadgets का उपयोग कर पाने का प्रयास कर रही है.
आप विदेश में रहकर भी अपने संस्कारों के कारण विश्व के एक मात्र धर्मं ' स्व की खोज' के प्रति जागरूक रह सकते हैं दुःख का विषय तो यह है की भौतिकता की झूटी चमक दमक एवं इंद्रिय सुखों की तलाश में भटकता हुआ पश्चिम का अनुकरण कर भारत के मानव भी अपने जन्म के हेतु को विस्मृत कर रहा है. भारत के शिक्षित वर्ग को भी अपने सनातन कर्तव्य का स्मरण कराने एवं उस की राह दिखाने वाले अत्यंत अल्प मात्र में विद्यमान हैं!
मानव जीवन की समाप्ति के पूर्व प्राचीन महर्षि अकल्पनीय ऊंचाइयों को पा लेते थे तो आज भी क्यों नहीं संभव है ;यह प्रश्न विचारणीय है. आज भी जिज्ञासु के लिए गुरु उपस्थित है तथा अहेतुकि कृपा वृष्टि करने के लिए तत्पर हैं. किन्तु उनकी कृपा प्राप्त करने के पश्चात् भी आवश्यक अभ्यास न होने से वांछित उपलब्धि नहीं मिल पाती.
कृपा प्राप्त जिज्ञासु के द्वारा पर्याप्त प्रयास न कर पाने एवं जिज्ञासुओं की संख्या में कमी आने का कारण भी स्पष्ट लक्ष्य है. आज पश्चिमी प्रभाव की सभी वर्गों में व्याप्ति होने के कारण भौतिक उपलब्धियों और वासनाओ में भी वृद्धि हो चुकी है. आज संपन्न व्यक्ति को समाज में ज्ञानी एवं विरागी की अपेक्षा अधिक सम्मान प्राप्त होता है.
विषम परिस्थितियों की विद्यमानता के उपरांत भी अपने जन्म की मौलिक आवाश्यकता के प्रति चेतना बनाये रखना ही हमारा कर्तव्य है फिर ईश्वर किसी न किसी रूप हमें उस मार्ग जाने के लिए किसी न किसी प्रकार से अवसर निर्माण अवश्य करते हैं
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