Wednesday, November 12, 2014

One who has dignity of knowledge, becomes serious and polite.
Fruits laden branch of a tree bows down itself.
Water, from the pitcher filled to the brim, does not spill-out when it is carried away by somebody on head,
Whereas, Water from a half filled pitcher spills out.
जब व्यक्ति अपने गर्व या अभिमान की रक्षा अपने गुणों के विकास के द्वारा नहीं कर पाते; तब, दूसरे आत्म-विकास की दिशा में सतत प्रयत्न-शील बने रहने के कारण सम्मान और ख्याति की मंजिले तय कर जाते हैं. उनकी ख्याति अपनी ख्याति से ऊंची होने लगती है ; तब स्वयं का गर्व चूर चूर हो जाता है ; और ईर्ष्या का रूप ले लेता है.
जिस प्रकार बैर, अव्यक्त क्रोध का स्थायी रूप होता है, उसी प्रकार ईर्ष्या आत्म विकास के मार्ग में असमानता के कारण उत्पन्न होती है.
इसलिए ईर्ष्या में परिस्थितियों के प्रति क्रोध के कुछ अंश का समावेश होता है. अतः. ईर्ष्या और बैर सगे भाई बहन है .
और अभिमान, एक भ्रान्ति है जो मनुष्यों के द्वारा अपनी शक्ति के अवास्तविक आकलन के कारन उत्पन्न होता है . OM
 

Thursday, November 17, 2011

MAHAYOG : GURU DEO GANGADHAR PRAKASH: Qn.WHAT IS SUCCESS?

GURUDEO GANGADHAR PRAKASH HAS LEFT HIS EARTHLY ABODE THIS MORNING. THE FINAL RITES WILL TAKE PLACE IN SHAHDOL ON 18-11-2011 AT SHAHDOL

MAHAYOG : GURU DEO GANGADHAR PRAKASH: Qn.WHAT IS SUCCESS?

GURUDEO GANGADHAR PRAKASH HAS LEFT HIS EARTHLY ABODE THIS MORNING. THE FINAL RITES WILL TAKE PLACE IN SHAHDOL ON 18-11-2011 AT SHAHDOL

Monday, January 10, 2011

इस पृथ्वी पर मनुष्यों के अतिरिक्त जितने भी प्राणी हैं वे ज्ञान समपन्न नहीं हैं ! मनुष्य ही मात्र एक ऐसा प्राणी है जो जीवन जीने के लिए उचित आचार और व्यवहार के तरीके आने वाली पीढ़ियों को सिखा सकता है.  अन्य प्राणियों को ईश्वर ने वाणी का वरदान नहीं दिया, फलस्वरूप  कोई भी प्राणी अपना  अर्जित ज्ञान एवं अनुभव अपने शिशुओं अथवा साथियों को व्यक्त नहीं  कर सकते !
मनुष्यों ने ही ज्ञान और अनुभव की धरोहर अनादि काल से स्मृति, श्रुति एवं पुराणों में संग्रह कर आने वाली पीढ़ियों के लिए सुरक्षित रखी.  इन्ही में निहित जीवन के मूल्यों का पालन करना ही मानव धर्म है. विभिन्न देशो में वहां के विद्वानों के द्वारा अनेक नीतिगत  निर्देश संग्रहित किये और अब वे उन सभी देशो और समाज के  विभिन्न वर्गों के द्वारा पालन किये जाते हैं. 

इन नीतियों का पालन करना प्रत्येक व्यक्ति का कर्त्तव्य रहा है .  भारतवर्ष के मनीषियों के द्वारा आचार व्यवहार के जिन मूल्यों को स्थापित किया वे संसार के किसी भी देश के द्वारा  स्थापित मूल्यों की अपेक्षा श्रेष्ट हैं.
आज हमारे समाज में विभिन्न कारणों से इन मूल्यों का पालन लोगों के द्वारा नहीं किया जारहा है जिसका प्रमुख कारण विदेशियों की  जीवन पद्धति का अनुसरण है.  विदेशी जीवन पद्धति में इन्द्रिय सुखो को भोगने के लिए विशेष  पाबंदियां विद्यमान नहीं हैं !
हमारे जीवन में प्रातःकाल शय्या त्याग से लेकर रात्रि में विश्राम काल तक विशिष्ट नियमो के पालन करने के निर्देश हैं.  पाश्चात्य शासन की अवधि में भारतीयता को अनेक प्रकार से दबाया कुचला गया. किन्तु फिर भी उतना पतन नहीं हो पाया जितना आज देखने में आ रहा है. आज पाश्चात्य साहित्य, सिनेमा,  और टी.वी. के बहु प्रचलित हो जाने के कारण भारतीय जीवन पद्धति का शुद्ध स्वरुप नष्ट हो चुका है.
आज का नवयुवक कॉन्वेंट शिक्षा पद्धति में माता पिता और पूज्य जनों को अभिवादन करना भूल चुका है. शराब सिगरेट और सिनेमा की लत के कारण न केवल अपना स्वास्थ्य, और धन नष्ट कर रहा है, वरन माता पिता को इन आवश्यकताओं की पूर्ती के लिए आवश्यक धन की व्यवस्था करने के लिए विवश भी करता है.
 जब इन की पूर्ती के लिए धन प्राप्त नहीं हो पाता तो लूट मार करने और अनेतिक तरीको का उपयोग से धनार्जन कर अपना चरित्र भी नष्ट कर रहे हैं.

Saturday, January 8, 2011

MA KUNDALINI

प्रीति बनकर  मै मिली  भगवान  से  ,
भक्त  के  ह्रदय  में  नित्य  मेरा  वास  है ,
विद्युल्लता  सी  मैं  प्रवाहित   होती  रही ,
साधना  में  योगियों  के  साथ  मैं ;
मैं  आराध्या, मैं  ही  साधना ,
मैं   ही हूँ   शिव -मुख  प्रेक्षणी ,
मैं  हूँ  लतिका  प्रेम  की , भाव  की ,
योगियों   के  ध्यान  की  
मैं ही शिव हूँ मैं ही शक्ति
मैं ही अर्धांगिनी विष्णु की


Monday, November 1, 2010

Qn.WHAT IS SUCCESS?

Nothing is real, nothing is stable on this earth. Life is like a spark produced by the friction wood, no body knows whither it comes and whence it goes. MAHATMA GANDHI
T
he word success is used in a vague sense. 
Success is attainment of desired goals The question is, whether the set goal is attainable or not. Whether one's principles are in concurrence with the established classic principles or not.
Then, what a success itself is? It is again the desire for name, fame, money, power etc. Attempts to attain these goals and attaining success makes one digress from the classic principles. 
The tenure of life on this earth itself is momentary so no worldly success has any meaning. The only thing that can be permanent is the service that a human being can render to other creatures and the nature without having a thought for gaining any thing in return, even a name or fame. Life's meaning is in achieving this success only because this can not be done by any creature, devils or deities. We, as human beings are only capable of doing this.
 Om Shrivastava, 09 Oct 12:44 pm

Tuesday, October 26, 2010

guru maharaj ke dwara gaaye gaye bhajan.

साधो  सहज  समाधी  भली गुरु  प्रताप  जा  दिन  से  जागी  
दिन  दिन  ओर  चली  

जहाँ  जहाँ  डोलूं  सो  परिक्रमा जो  जो  करूँ  सो  सेवा 
जो  सौओं तो  करूँ  दंडवत,  पूजूं  ओर  ना  देवा 

जो  सुनू  सो  सुमिरन जो जो  कहूँ  सो  नामा   
खाऊँ   पिउन  सो  पूजा 
गृह  उजार इक सम लेखुं भाव  ना  राखूं दूजा 
आँख  ना  मूंदुं  कान  ना  रुंधुं
तनिक  कष्ट  नहीं  धारु 
खुले  नैन  पहिचाणु 
हंस  हंस  सुन्दर  रूप  तिहारो 
शब्द  निरंतर  सो  मन  लागा
मलिन  वासना  त्यागी 
उठत  बैठत कबहूँ  न  बिसरे 
ऐसी  तारी  लागी
 साधो  सहज  समाधी  भली