इस पृथ्वी पर मनुष्यों के अतिरिक्त जितने भी प्राणी हैं वे ज्ञान समपन्न नहीं हैं ! मनुष्य ही मात्र एक ऐसा प्राणी है जो जीवन जीने के लिए उचित आचार और व्यवहार के तरीके आने वाली पीढ़ियों को सिखा सकता है. अन्य प्राणियों को ईश्वर ने वाणी का वरदान नहीं दिया, फलस्वरूप कोई भी प्राणी अपना अर्जित ज्ञान एवं अनुभव अपने शिशुओं अथवा साथियों को व्यक्त नहीं कर सकते !
मनुष्यों ने ही ज्ञान और अनुभव की धरोहर अनादि काल से स्मृति, श्रुति एवं पुराणों में संग्रह कर आने वाली पीढ़ियों के लिए सुरक्षित रखी. इन्ही में निहित जीवन के मूल्यों का पालन करना ही मानव धर्म है. विभिन्न देशो में वहां के विद्वानों के द्वारा अनेक नीतिगत निर्देश संग्रहित किये और अब वे उन सभी देशो और समाज के विभिन्न वर्गों के द्वारा पालन किये जाते हैं.
इन नीतियों का पालन करना प्रत्येक व्यक्ति का कर्त्तव्य रहा है . भारतवर्ष के मनीषियों के द्वारा आचार व्यवहार के जिन मूल्यों को स्थापित किया वे संसार के किसी भी देश के द्वारा स्थापित मूल्यों की अपेक्षा श्रेष्ट हैं.
आज हमारे समाज में विभिन्न कारणों से इन मूल्यों का पालन लोगों के द्वारा नहीं किया जारहा है जिसका प्रमुख कारण विदेशियों की जीवन पद्धति का अनुसरण है. विदेशी जीवन पद्धति में इन्द्रिय सुखो को भोगने के लिए विशेष पाबंदियां विद्यमान नहीं हैं !
हमारे जीवन में प्रातःकाल शय्या त्याग से लेकर रात्रि में विश्राम काल तक विशिष्ट नियमो के पालन करने के निर्देश हैं. पाश्चात्य शासन की अवधि में भारतीयता को अनेक प्रकार से दबाया कुचला गया. किन्तु फिर भी उतना पतन नहीं हो पाया जितना आज देखने में आ रहा है. आज पाश्चात्य साहित्य, सिनेमा, और टी.वी. के बहु प्रचलित हो जाने के कारण भारतीय जीवन पद्धति का शुद्ध स्वरुप नष्ट हो चुका है.
आज का नवयुवक कॉन्वेंट शिक्षा पद्धति में माता पिता और पूज्य जनों को अभिवादन करना भूल चुका है. शराब सिगरेट और सिनेमा की लत के कारण न केवल अपना स्वास्थ्य, और धन नष्ट कर रहा है, वरन माता पिता को इन आवश्यकताओं की पूर्ती के लिए आवश्यक धन की व्यवस्था करने के लिए विवश भी करता है.
जब इन की पूर्ती के लिए धन प्राप्त नहीं हो पाता तो लूट मार करने और अनेतिक तरीको का उपयोग से धनार्जन कर अपना चरित्र भी नष्ट कर रहे हैं.
GURUDEO SHRI GANGADHAR PRAKASH BRAHMACHARI JI MAHARAJ IS THE SHAKTIPAT ADHIKARI GURU. HE IS THE DISCIPLE OF SWAMI SHRI VISHNU TIRTH JI MAHARAJ; DEVAS ASHRAM, NARAYAN KUTI, DEWAS (MP; BHARAT). THE TRADITION OF GURU and THE PEDIGREE THAT HE BELONGS TO IS DEPICTED IN THE web site adhyatmajyoti.org which is headed by shri Devendra Vigyani ji WHO IS ALSO A RENOWNED GURU OF THE LINEAGE. Find more about gurudev on the blog.
Monday, January 10, 2011
Saturday, January 8, 2011
MA KUNDALINI
प्रीति बनकर मै मिली भगवान से ,
भक्त के ह्रदय में नित्य मेरा वास है ,
विद्युल्लता सी मैं प्रवाहित होती रही ,
साधना में योगियों के साथ मैं ;
मैं आराध्या, मैं ही साधना ,
मैं आराध्या, मैं ही साधना ,
मैं ही हूँ शिव -मुख प्रेक्षणी ,
मैं हूँ लतिका प्रेम की , भाव की ,
योगियों के ध्यान की
मैं ही शिव हूँ मैं ही शक्ति
मैं ही अर्धांगिनी विष्णु की
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