Wednesday, November 25, 2009

वीर गति प्राप्त जनों के प्रति श्रद्धांजलि

 वीर गति प्राप्त जनों के प्रति श्रद्धांजलि
ईश्वर अनंत, अव्यय, अक्षर एवं  महान है. 
भारत के सदग्रंथ सर्व जनों के प्रति  प्रार्थना से भरे हुए है. सभी  सुखी, निर्भय, सर्व-कल्यानेच्छु  तथा दु:खहीन हों. ऐसी मानसिकता के देश वासियों को भी प्रताड़ना सहन करना पड़ती है. सभी युगों में ऐसे लोग हमारे बीच में भी विद्यमान थे. यज्ञ करने वाले साधुओं को प्रताड़ित होना पड़ता तथापि वे यही प्रार्थना करते थे :-
सर्वे भवन्तु सुखिन: सर्वे सन्तु निरामय:!
सर्वे भद्राणि पश्यन्तु मा कश्चित् दु:ख भाग भवेत् !!  
हमारी सीमाओं पर  हर ओर से अनेक सदियों  से आक्रमण होते रहे हैं, जिसका कारण था हमारी सम्पन्नता! अहिंसक व निरीह पशु भी मनुष्य कि हिंसा के पात्र बनते हैं. शांतिप्रिय देशवासी होने से आज ऐसे देश जहाँ युद्ध व प्रेम में सभी उचित माना जाता है हमारे ऊपर अपना अधिकार जमाने के लिए सीधे आक्रमण या अन्य कूटनीतिक विधियों का आश्रय लेने  में आज भी संलग्न हैं. हम अपनी सुरक्षा के लिए हर संभव प्रयास करते हैं पर आक्रमणकारी षणयन्त्र की अद्भुत विधियाँ सोचकर ओर योजनायें बनाकर हमारे ऊपर अपना प्रभुत्व जमाना चाहते  है जिसमे हमारे अनेक देशवासी बंधुओं को अपने प्राण व सम्पति से च्युत होना पड़ता है.
भगवन श्री कृष्ण के दिव्य वचनानुसार वे कर्त्तव्य परायण जन  जो अपने कर्तव्यों का निर्वाह करते हुए दिवंगत होते हैं,  वे युद्ध भूमि में वीरगति प्राप्त करते हैं और ईश्वर की विशेष कृपा के पात्र होते हैं. जिन निर्दोषों को आतताइयों ने अकारण मृत्यु दी ईश्वर के पास उनके लिए भी सुगति की व्यवस्था होगी.अभी एक रिअलिटी शो बना है जिसमे पूर्व जन्म की स्मृति को जागृत किया जाता है. उसमे  पूर्व जन्म की घटनाओं एवं मृत्यु के पूर्व की स्मृतियों का विश्लेषण करें तो यही निष्कर्ष प्रत्यक्ष होता है कि जो पूर्व जन्म में किसी दुर्घटना वश अपनी पूर्ण आयु का भोग  नहीं कर पाए थे; उन्हें ईश्वर ने इस जन्म में पहले से उत्तम कुल, स्थान एवं मान-सम्मान के साथ पुनः उत्पन्न किया और वे यहाँ अपने उत्तम जीवन को व्यतीत कर रहे हैं.
अतः ऐसे अकाल मृत्यु प्राप्त व्यक्तियों के परिवार जन भी उनके लिए शोक न करें. क्योंकि गीता में भगवान् श्री कृष्ण ने कहा है कि "जो हो चुका है उसके लिए शोच क्यों करें तथा जो अभी घटित ही नहीं हुआ उससे भयभीत क्यों हों "
    तात्पर्य यह कि मृतकों के परिवार जन शोक  न करें  बल्कि उनके प्रिय जनों की सद्गति के लिए ईश्वर से प्रार्थना करें तथा उनके निमित्त से  "अपाहिजों तथा वास्तव में पात्र लोगो को यथाशक्ति मृतक के नाम से दान दे, गायों एवं निरीह पशुओं पर अत्याचार न करे न होने  दे न ही किसी को ऐसा करने के लिए प्रेरित करें जिससे  उनके प्रिय जनों को शांति मिले ईश्वर भी उनके कार्य से संतुष्ट हों"
      भविष्य में उनके सत्कार्य उन्हें भी सुफल प्रदान करें .. दिवंगत आत्माओं की सद्गति के लिए हम सतत ईश्वर से प्रार्थना करें, ईश्वर को सभी कार्यों के लिए धन्यवाद दे; भले ही जिन्हें हम अशुभ या प्रतिकूल समझते हैं वे भी ईश्वर की अनुग्रह समझ कर बिना किसी विवेचना के स्वीकार करें.. ईश्वर हमें दु:खों को सहन करने के लिए भी मानसिक शक्ति, शान्ति एवं धैर्य प्रदान करें..  अस्तु... शुभेच्छाओं सहित ~~~