Thursday, August 27, 2009

SHRI VISHNU TIRTH JI MAHARAJ ;



Posted by Picasaश्री विष्णुतीर्थ जी महाराज 
ब्रह्मानंदम परमसुखदं केवलं ज्ञान्मूर्तिम 
द्वंदातीतं  गगन सदरिषम  तत्त्वमस्यादि  लक्ष्यं!!
एकं नित्यं विमलमचलं सर्वधीसाक्षिभूतम
भावातीतं त्रिगुण रहितं  श्रीविष्णु तीर्थं नताः स्म !!
अखंड मंडलाकारं व्याप्तं येन  चराचरम् ! 
तत्पदं दर्शितं येन तस्मै श्री गुरवे नमः!
अज्ञानतिमिरान्धस्य ज्ञानांजनशलाकया ! 
चक्षुरुन्मीलितं येन तस्मै श्री गुरवे नमः!!  
गुरुर्ब्रह्मा गुरुर्विष्णुर्गुरुर्देवो महेश्वरः ! 
गुरुः साक्षात् परम् ब्रह्म तस्मै श्री गुरवे नमः!! 
गुरु के बिना ज्ञान नहीं होता ! गुरु ही आँखें खोलकर, हाथ में मशाल लेकर विघ्नोंसे बचाकर  शिष्य को लक्ष्यस्थान सुखसे पंहुचाता है! गुरु और ईश्वर में कोई भेद नहीं, प्रत्युत शिष्य केलिए
तो गुरु इश्वर से भी बढ़कर है ! यही गुरु तत्त्व है.
रचनाएँ.:-   श्रीविष्णु तीर्थ जी महाराज  के द्वारा सौंदर्य लाहिरी सहित अनेक ग्रंथों की रचना की गई थी. किन्तु सौंदर्य लहरी को  साधकों एवं अनुयाइयों के अतिरिक्त अन्य परम्पराओं के साधकों, तांत्रिक-शोध-कर्ताओं द्वारा गूढ़ अर्थों के विश्लेषण ज्ञात करने केलिए सन्दर्भ ग्रन्थ के रूप में उपयोग में लाया जाता है एवं पुस्तकालयों में भी इसे एक  अनुपम  कृति के रूप में संगृहीत किया जाता है. 
उनके द्वारा लिखित ग्रंथों में विशेष रूप से वर्ण्य ग्रन्थ निम्नानुसार हैं. :-
१. "सौंदर्य लहरी"      यह ग्रन्थ मूलतः संस्कृत भाषा में आदि शंकराचार्य जी के द्वारा लिखा गया था. इसकी रचना पद्य (श्लोकों ) के रूप में की गई है ! ग्रन्थ दृश्य रूप में देवी की प्रार्थना एवं सौंदर्य का वर्णन प्रतीत होती है. किन्तु इसके प्रत्येक श्लोक में गूढ़ अर्थ छिपा हुआ है. जिसका अर्थ स्वयं आत्म भाव में स्थित होने वाले संत के द्वारा ही संभव. स्वामी जी ने प्रत्येक श्लोक की अत्यंत विषद व्याख्या की है जिसमे न केवल ग्रंथों में वर्णित तथ्यों का आश्रय लिया है वरन  साधना में होने वाले अनुभवों एवं  साधना की बारीकियों को  विषदरूप से  समझाया है. श्लोकों के गूढ़ अर्थों की पुष्टि वेद, उपनिषदों एवं अन्य योग एवं तांत्रिक ग्रंथों के आर्ष वाक्यों से की है.
२.DIVINE POWER :- आंग्ल भाषा में रचित यह ग्रन्थ विशेषतया ऐसे पाठकों के लिए लिखा गया है जो भारतीय संस्कृति के गूढ़ तथ्यों को समझना चाहते हैं. इसमें कुण्डलिनी शक्ति, उसके अवतरण, लक्षण एवं साधना सम्बन्धी विशेषताओं को पांडित्य पूर्ण ढंग से समझाया है. लेखक की विद्वता एवं भाषा पर विशेषाधिकार का परिचय भी इस ग्रन्थ के पठन  से प्राप्त होता है. महा महोपाध्याय पंडित गोपीनाथ जी कविराज जी ने इस ग्रन्थ पर दी हुई अपनी टिपण्णी में इस तथ्य को स्वीकारा है कि लेखक अनुभवी प्रतीत होते हैं.
A staunch nationalist contributor to the freedom consciousness  turned a Sanyasi and Yogi ., An eminent writer in English, Hindi and Sanskrit and an Advocate in Allhabad High Court of Uttar Pradesh.

Wednesday, August 26, 2009

CURRENT DISCIPLES OF GURUDEO


THE DISCIPLES OF SHRI GANGADHAR PRAKASH JI BRAH. 
FROM NARSINGHPUR:-
1 SHRI LALIT BIHARI SHRIVASTAVA, and his wife Smt. KISHORI DEVI
2 SHRI OM PRAKASH SHRIVASTAVA and his wife Smt. RENUBALA THE BLOGGER
3.SHRI GIRISH KUMAR VARMA and his wife Smt. MANORAMA DEVI

FROM CHITRAKOOT:-
1. Late SHRI RAM SAHAY JI YADAV

This  list does not  intend or claim  to display all the disciples. Only those who have been in contact are displayed If any disciple wishes his name to be added here, he/she may contact the blogger or send a comment hereunder.